सरहद
ये दो देश नहीं दो जिस्म है
होंठो पर नदियों की नमी
और जुबां पर इश्क़ और प्यार की नज़्म लिए
ये दो देश नहीं दो हालात है
जो दिल-ए-कश्मीर बांटते हैं
समझौते पर चलते हुए
अमृतसर और लाहौर बांटते हैं
बाघा की हवाओं के ज़रिये
ना जाने कितने ननिहाल बांटते हैं
ये दो देश नहीं … दो मुल्क नहीं
रण के बिस्तर पर कितनी ही रातों में
आंसुओं से खारी हुई रेत बांटते हैं
तलाक की गलती के बाद हलाला भुगतते
मिलने को बेताब ये सब्र की रात काटते हैं
ये दो देश नहीं दो जस्बात हैं
ये ज़रदोज़ी और फुलकारी के सहारे
रिश्ते और यादें टांकते हैं
दिल्ली के ढाबों में करांची के पकवान
सैंतालीस से ये अबतक बांटते हैं
क्रिकेट के खेल में जीतहार का शोर
और सरहद पर बंटवारे की तोप के तले
ये कितनी ही चीखें कितना अफ़सोस बांटते हैं
ये दो मुल्क नहीं दो अंजाम हैं
जो खून, तहज़ीब, और ईमान से जुड़े
कितने ही भूले बिसरे
खत खंडहर और खानदान बांटते हैं
सियासत और सिसकियों के बीच,
ये कितने शहीद जवान बांटते हैं
ये दो देश नहीं दो दास्ताँ है।
By:
Mandvi Mishra
BA(JMC)