तीसरा चेक बॉक्स
तीसरा चेक बॉक्स
गिरफ्तार इस शरीर में,
क्यों कैदी मैं सोच का तुम्हारा,
कभी माँ बोलती थी हूँ उसका भेजा फरिश्ता मैं,
अब हैं लगता हूँ उसका मैं धुत्कारा।
सच्ची घटनाओं पर आधारित,
काल्पनिक हैं कहानी ये,
जिसमे कभी ना राजा को राजा,
ना ही मिलनी कभी रानी को रानी हैं?
पर अब समाज का विधान यही,
ना चलनी इसमें आनाकानी हैं,
बस एक होता राजा और
एक ही रानी सभी कहानी पुरानी में।
घुमा के यू, हूँ कर रहा बात,
सीधे सच से कॉप जाती रूह हैं,
अब जो देश हमारी चीखे हैं ना सुनता,
उससे अपनापन मैं मांगू किस मुह से?
मांगा था कुछ सवालो का जवाब,
मगर था मांगा जवाब ना मुह तोड़ कभी,
ऊपरवाले को था ना हर्ज़, फर्क ऐसे के चक्कर में
फिर क्यों गए अकेला छोड़ सभी?
अच्छे भले बचपन ये मेरे ने
जवानी आते-आते, जाने क्या ये मोड़ लिया,
इधर खोज में लगा जो खुदके मैं,
उधर तुमने मनुष्य ही मन्ना छोड़ दिया।
अरे जब कर ग्रंथ याद सब, थे सार से वंचित
तो किस बात का तुमको अभिमान हैं,
उस तंग तीसरे चेक बॉक्स में देखो तो,
कैद तुम जैसा ही एक इंसान मैं।
Shivesh Pandey
VSJMC
1st Semester