आत्मविश्वास
लूट थी मोहल्ले में,
दोषी ठहराया मुझे,
गलती मेरी न थी फिर भी मेरी नज़रों मैं गिराया है मुझे,
तोह क्या हुआ जोह मैं अच्छा नही दीखता तोह क्या हुआ जोह मुझमें खामियाँ है,
पर मेरी ख़ूबियाँ मेरी खामियो से बढ़कर है,
मेरा आत्मविश्वास तुम्हारी उस सोच कर बढ़कर है,
जो मेरे इतने ही क़रीब हो तोह क्यों नहीं अपनाते मुझे,
क्यों नहीं देखते एक दोस्त, एक साथी एक यार की तरह,
क्यों नहीं बुलाते किसी आम इंसान की तरह,
याद रखना तुममे भी खामियां है तुम जो बोलते k
हो अलफ़ाज़ नही भावना है,
पता नहीं कौन–कौन मर रहा है अन्दर से अपने अन्दर से,
बस हमें अपने अंदर का इंसान जगाना है,
और बस एक मुस्कान देके सबको अपना दोस्त बनाना है.
Nakul Kapoor
VSE
Eco Hons., 1B